Wednesday, November 16, 2011

"उत्तराखण्ड मा रेल"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
ऋषिकेश बिटि कर्णप्रयाग तक,
चललि बल रेल,
देखा दौं कथगा सुन्दर छ,
बल यू खेल.....
ह्वै सकदु प्रवासी उत्तराखंडी,
रेल मा बैठिक, अपणा उत्तराखण्ड,
परदेश बिटि बौ़ड़िक आला,
अपणा मुल्क की सुन्दरता मा,
चार चाँद लगाला, ख़ामोशी भगाला,
घरू का बन्द द्वार मोर ऊगाड़ला,
ऊदास कूड़ी पुंगड़ि आबाद होलि,
विकास की बयार बगलि,
सुन्दर सुपिनु अर खेल छ,
अगर! यनु होलु त समझा,
"उत्तराखण्ड मा रेल",
एक भलु खेल छ.......
पर यनु भी ह्वै सकदु,
प्रवासी उत्तराखंडी बौ़ड़िक नि आला,
भैर का लोग, उत्तराखण्ड की जमीन,
कौड़ी का भाव खरीदिक,
महल बणाला, अपणा पाँव जमाला,
हे! उत्तराखंडी भै बन्धो, हमारी ठट्टा लगाला,
यनु होलु खेल, ऊँका खातिर वरदान,
"उत्तराखण्ड मा रेल", जरा सोचा.......
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १७.११.११ )
www.pahariforum.net

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