Thursday, September 13, 2012

"कुछ लगावा छ्वीं"

प्यारा पहाड़ की,
रौंत्याळा पहाड़ की,
अपणि प्यारी जन्मभूमि,
देवतौं का देश की,
गंगा जी का  मैत की....
 
जख औन्दि जान्दी छन ऋतु,
ह्युंद, मौळ्यार, रूड़ी, बस्गाळ,
बण मा बाँदर, बाग़, रीक्क,
भौं कखि मारदा फाळ,
हमारा प्यारा कुमाऊं गढ़वाळ.....
 
जख धार ऐंच बगदु बथौं,
धौळ्यौं कू छाळु पाणी,
सर सर बग्दु जाणी,
रौंत्याळि मसूरी जख,
प्यारा पहाड़ की राणी,
हेरी हेरी खुश होंदु,
मनख्यौं कू मन पराणी.....
 
जख रीत छन रसाण  छन,
मनख्यौं का मयाळु  मन,
"कुछ लगावा छ्वीं",
वे पहाड़ की,
रौंत्याळा पहाड़ की,
अपणि प्यारी जन्मभूमि,
देवतौं का देश की,
गंगा जी का  मैत की....
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित ब्लॉग पर प्रकाशित
13.9.2012

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