Wednesday, September 26, 2012

"पैसे पेड़ पर नहीं उगते"


बचपन में पिताजी ने,
एक बार कहा था,
पैसे पेड़ पर नहीं उगते,
तब मैं मासूम था,
कुछ समझ नहीं आया.....

विद्या अध्ययन के बाद,
जब मैं नौकरी करने लगा,
तब समझ में आया,
पैसे कमाने से उगते हैं,
पैसे पेड़ पर नहीं उगते,
ऐसा कोई जिम्मेदार कहे,
तो बात सच है......

वैसे कहते हैं,
ईमान बेच लो,
पैसा ही पैसा,
पर किस लिए?
दुनिया के अंतिम स्टेशन,
जाते समय,
क्या साथ जायेगा,
या साथ निभाएगा,
नहीं नहीं सिर्फ जीने तक,
पापी पेट के लिए,
बाद में कोई और खायेगा,
मौज उड़ाएगा....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
स्वरचित एवं प्रकाशित,
२६.९.२०१२
 

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