Tuesday, August 13, 2013

“पहाड़ मा जल प्रलय”

16-17 जून-2013 कू,
अतिवृष्‍टि सी,
रड़युं, झड़युं, बग्‍युं,
त्रस्‍त होयुं पहाड़,
जख ताण्‍डव नृत्‍य करि,
मंदाकिनी, अलकनन्‍दा,
भागीरथीजिन.....

केदारनाथ जी,
वे दिन ढुंगु बणि,
निर्दयि हवैन,
मनखि बेबस हवैक,
काल का मुख समैन,
जबकि मनखि,
ऊंका धाम मा,
मन मा मोक्ष की,
कामना करिक औन्‍दा....

पहाड़ वे दिन,
चुप्‍पचाण्‍या था,
आंखौं मा ऊंका आंसू,
बण बूट रोणा,
मनखि अपणि जान,
पिछनैं भागदि,
मौत सी बचौणा,
कुछ दब्‍यन, बग्‍यन,
कुछ अपणा मुल्‍क,
घौर बौड़ा हवैन......

फिर वाही रौनक,
पहाड़ मा लौटलि,
हयूं पड़लु,
हिंवाळि काठयौं मा,
नयीं डाळि जमलि,
भेळ पाखौं मा,
खेल कौथिग उरेला,
धार खाळ मा,
हिटण का बाटा,
सैणि सड़क,
मुल्‍क्‍यौं का खातिर,
नयां कूड़ा,
नौना नौन्‍यैां का,
सरस्‍वती मंदिर,
सब बण्‍ला,
पर जौंका परिवार,
काल का मुख समैंन,
ऊंका मन मा,
पहाड़ मा जल प्रलय
त्रासदी की तस्‍वीर,
मिटि नी सकदि.....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
12.8.13

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