Tuesday, August 27, 2013

"ऊकाळ जनि जिन्‍दगी"

हरेक की अपणि अपणि,
काटण लग्‍यां छन सब्‍बि,
जंजाळ छट्यौन्‍दु छट्यौन्‍दु,
चन्‍नि छ जिंदगी की गाड़ी,
देख्‍दु जावा अग्‍वाड़ि,
क्‍या क्‍या होलु जिंदगी मा,
पिंडाळु का पात मा पाणी सी,
ढळ ढळ ढळकदि जिंदगी,
कब कथैं ढळकि जाऊ,
यू कैकु भि पता निछ,
चार दिन की चांदनी छ,
हमारी तुमारी जिंदगी,
ऊकाळ जनि जिन्‍दगी मा.....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा “जिज्ञासु”
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
27.8.13

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