Tuesday, August 13, 2013

“आफत मा उत्‍तराखण्‍ड”


उत्‍तराखण्‍ड मा आफत
आज किलै आई?
धौळयौं का धोरा बस्‍यां,
होन्‍दा खान्‍दा मनख्‍यौं की,
जैन मवासि धार लगाई,
कैकि लगि होलि नजर....
 
आज सब्‍बि बोन्‍ना छन,
यू प्रकृति कू प्रकोप छ,
सेाचा दौं प्रकृति तैं,
गुस्‍सा किलै आई,
धरयुं करयुं मनख्‍यौं कू,
जल प्रलय मा बगाई....
 
उत्‍तराखण्‍ड की सदानीरा,
धौळयौं तैं बांध मा बांधिक,
घोर अनर्थ कर्रयालि,
सैडु पहाड़ ठक्‍कटेक
खूब करिक खम्‍मडैक,
कोरी कोरिक, तोड़ी फोड़िक,
जख तक हवै सकु,
तंत्र अर ठेकेदारुन,
अपणा मन की करयालि...
 
आवाज उठि, हे यनु न करा,
धरती मां छ तुमारी,
वींकू श्रींगार करा,
जब कैन नि सुणि,
प्रकृतिन पहाड़ मा,
अपणु रौद्र रुप दिखाई,
घोर तबाही मचाई
 
हिमालय तैं गुस्‍सा आई....
देवभूमि का देव्‍ता रुठ्यन,
या प्रकृति रुठि,
या कैकि नजर लगि,
भयंकर जल प्रलय कू दंश,
आज मनख्‍यौंन,
उत्‍तराखण्‍ड की धरती मा,
त्रस्‍त हवैक भुगत्‍यालि,
सबक छ अग्‍वाड़ि का खातिर,
विकास जरुर हो,
पर विणास की कीमत फर,
कतै ना...
 
 
धरती कू श्रृंगार हो,
पर्यावरण की रक्षा भी,
पहाड़ मा तीर्थ यात्रा हो,
सैल्‍वान्‍यौं की यात्रा,
पर्यावरण की दृष्‍टि सी,
पहाड़ का खातिर,
भलि बात निछ......
 
 
दुख का आंसू पर्वतजन का,
समय का साथ सूखि जाला,
दुख भी भूली जाला,
बग्‍त की पुकार छ,
प्रभावित पर्वतजन की,
तन मन धन सी,
संकट की घड़ी मा,
भरसक मदद हो...
 
 
खण्‍ड खण्‍ड हवैगि,
आज हमारु उत्‍तराखण्‍ड,
उत्‍तराखण्‍ड की आपदा मा,
जौन अपणि जान गवांई,
बद्रीविशाल जी ऊं तैं,
सदगति प्रदान करवन,
कविमन की कामना छ,
जनु ऐंसु हवै, यनु कब्‍बि न हो,
देवभूमि का देव्‍तौं सी,
प्रार्थना छ......
 
दिनांक 11.8.2013 को 2 बजे गढ़वाल हितैषणी सभा, गढवाल भवन, पंचकुया रोड द्वारा अयोजित कवि सम्‍मेलन में कविता पाठ हेतु दिनांक 15, जुलाई-2013 को रचित एंव पठित  मेरी कविता।

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