Friday, September 6, 2013

"कीड़ू की ब्‍वैन"


अपणि जिंदगि मा,
सदानि खौरि खैन,
सोरा भारा सदानि वींका,
भारी बैरि रैन...

पेट मुळया छ,
कीड़ू बिचारु,
वेकु बाबा जितारु,
ढाकर बिटि औन्‍दि दां,
बीच बाटा मा मरि,
कीड़ू मुळयान,
सदानि गौरु चरैन,
दगड़ि का दगड़्या,
वेका सब्‍बि स्‍कूल गैन....

कीड़ू की ब्‍वैन,
लोगु का छाकला करि,
ध्‍याड़ी मजूरी करि,
पाळी कीड़ू, दिन बितैन,
जब ज्‍वान ह्वै वींकू कीड़ू,
होन्‍दा खांदा दिन भि ऐन...

कीड़ू की ब्‍वैन, हे राम दा,
बुढेन्‍दि बग्‍त,
बुरा दिन बितैन,
लाठी का सारा हिटदि थै,
बिचारि रग रग रगर्यांदि,
गौं फुंड औन्‍दि जान्‍दी,
टोटगि कमर, नजर कम,
भट्यान्‍दि रन्‍दि थै,
हे मेरा कीड़ू, मरिग्‍यौं बेटा,
आज मेरु शरील खूब निछ...

एक दिन यनु आयी,
कीड़ू की ब्‍वै स्‍वर्ग चलिगि,
गौं का लोग आज,
भौत याद करदा छन,
हे राम दा, कनि भग्‍यान थै,
बिचारि कीड़ू की ब्‍वै......

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षति एवं प्रकाशित

5.9.2013, E-Mail: jjayara@yahoo.com

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