
छक्कि छक्किक देणी छ,
लोभ हमारु यथगा छ,
धीत नि भरेणि छ....
छाती मा वींकी,
धम्मद्याणा छौं,
सतै सतै खाणा छौं,
खराब कर्रयालि हवा पाणी,
धरती मां का ऊपहार की,
कदर कतै भि नि जाणी,
सोचा जैं धरती मा,
हमारी गुजर बसर होणि,
मोहमाया का वश ह्वैक
लोभ हमारु यथगा छ,
धीत नि भरेणि छ....
धरती हमारी मां छ,
जथगा ह्वै सकु श्रृंगार करा,जंगळ, जल, जमीन कू,
मन सी अपणा मान करा,
रुठि जाली धरती मां,
सोचा दौं तब क्या होलु,
वींकी भौणि कुछ भि करा,
मनखि एक दिन रोलु....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षति एवं प्रकाशित6.9.2013, E-Mail: jjayara@yahoo.com
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