Tuesday, September 3, 2013

भूत की ब्‍यथा...


द्वी भूत जौन आपस मा,
दुआ सलाम करि,
पर मन सी दुखी होयुं,
एक भूत बोन्‍नु, तू त भाई,
दिन मा भांग की गोळी खैक,
फंसोरिक से जांदु,
पर मैं भौत दुखी छौं...

शमशाण मा दिन मा,
जू मर्युं मुर्दा ल्‍हौन्‍दा,
घौर मा नि मर्दु उंकू मुर्दा,
खूब उत्‍पात मचौन्‍दा,
तब मेरी निंद मा,
भारी खलल पड़ि जांदु,
क्‍या ह्रवै ब्‍याळि,
त्‍वैकु विस्‍तार सी बतौन्‍दु......

चार भायौं की मां मरी,
अर वीं सनै शमशाण मा,
अंतिम क्रिया का खातिर,
ऊंका लंगि संगि ल्‍हेन,
चारी भाई लड़न लग्‍यन,
ब्‍वै का ईलाज फर होयां,
खर्चा की पातड़ी खोलि,
पिरपिरा होण लग्‍यन,
अर गति मा बैठण कू,
क्‍वी नि ह्रवै राजि.....

ऊंका गौं का एक,
धन सिंह काका तैं,
भौत गुस्‍सा आई,
मरि जैला माच्‍द तुम,
यथगा बोलिक चिता फर,
वैन आग लगाई,
अपणु मुंड मुंडाई,
मै बैठलु गति मा,
जब तुम यना,
नौ धरौण्‍या ह्रवैग्‍यें.....

सुण दगड़या फेर,
चार भाई अपणा,
मर्रयां बुबा तैं ल्‍हेक,
शमशाण मा ऐन,
सब्‍बि बुबा की गति मा,
बैठण कू लड़न लगिग्‍यन,
किलैकि बुबा जी की,
अंतिम इच्‍छा यनि थै,
जू मेरी गति मा बैठलु,
वे सनै गौं का न्‍योड़ु कू,
एक खारी कू सेरु मिललु....

चारी भायौं मा भारी,
घमसाण मचिगि,
क्‍या बोन्‍न उत्‍पात मचिगि,
ऊंका गौं का एक,
मन्‍खिन पुलिस बुलाई,
खूब करिक ह्रवै,
चारी भायौं की तब,
डंडान शमशाण मा धुनाई,
उ बिचारा हवालात मा गैन,
ऊंका गौं का घन्‍ना काकान,
ऊंका बुबा जी की,
अंतिम क्रिया करिक,
गति मा बैठण की,
ईच्‍छा मन सी जताई,
तौंकु निसाब अब,
अदालत मा हि होलु,
या बग्‍त की मार छ......

देख भुला भूत तू,
मन्‍ख्‍यौं का प्रपंच सी,
मैं अति परेशान छौं,
ये शहरी शमशाण छोड़िक,
चल भुला भूत,
अब कखि गंवाड़या,
शमशाण मा जौला,
वख त चैन सी रौला.....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्‍लाग पर प्रकाशित
2.9.2013
माननीय भीष्‍म कुकरेती जी की भूतूं ब्यथा-कथा फर आधारित मेरी या कविता छ।
चबोड़्या -चखन्यौर्या -भीष्म कुकरेती 

 
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