(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
पराणु सी प्यारू छ, दुनियाँ मा न्यारू छ,
देवतौं कू मुल्क अर भोले जी कू प्यारू छ,
कवि, लेखक, गितांग, नचाड़, बंठ्या बैखु का,
मयाळु मन मा बस्युं, "हमारू पहाड़",
गंगा यमुना कू मैत, माँ नन्दा कू प्यारू छ,
गर्व छ हमतैं, पराणु सी प्यारू "हमारू पहाड़",
जन्मभूमि, देवभूमि, मुल्क हमारू छ.
जख हैंस्दु छ हिमालय, प्यारू बुरांश,
प्यारी फ्योंलि कू मैत, वीं तैं भी प्यारू छ,
मन मा सदानि बस्युं रंदु, हमारा मन मा,
हे दिदा भुलौं, बल कथगा न्यारू छ,
पराणु सी प्यारू, कवि "जिज्ञासु" का मन मा,
दूर परदेश मा भी बस्युं, "हमारू पहाड़",
पराणु सी प्यारू छ, दुनियाँ मा न्यारू छ.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २२.८.२०११)
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हमारू पहाड़...
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
अपनी जन्म भूमि सब्बी तैं प्यारी लगदी जयाडा जी, अर फिर उत्तरखंड त सुन्दर ही छ. एक अच्छी कविता...... पर थोड़ा धार देणा कि जर्वत छ.
ReplyDeleteलाग्यां रावा..... शुभकामनाओ दगड़ -
please remove " Word Verification " from your blog Jayada ji.
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