(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
लिख्युं छ, मैं यख नौनौ समेत,
कुल देवतौं की कृपा सी,
कुशल छौं, आशा छ आप भी,
कुशल मंगल ह्वैल्या, अबरी हमारी भैंसी,
लैंदी छ अर भारी दुधाळ भी,
हमारी टक्क तुम फर लगिं छ,
तुम घौर ऐ जाँदा, तस्मै खै जाँदा,
ये सौण का मैना, चौमासू लग्युं छ.
नन्दु अर नारैणु स्कूल जाण लग्यन,
मास्टरजिन दुयौं कू नौं लिख्यालि,
मैकु भारी ख़ुशी छ, तुम भी होला,
माली सारी झंगरेड़ि छ, अर बेली सारी कोदाड़ी,
बल्दु की जोड़ी मेरी माळ्या रखिं छ,
हमारू हौळ तांगळ पदान जी, ख्यास करि लगाणा छन,
फसल पात खूब लगिं छ, ह्वै सकु त घौर औन्दि बग्त,
मैकु एक हरीं साड़ी अर लाल बिलोज,
जरूर ल्हैन, किलैकि बग्वाळ,
श्रीनगर बैंकुंठ चतुर्दसी कू मेळू,
ह्युंद का मैना होला,
आपकी जीवनसाथी.............
(सर्वाधिकार सुरक्षित अवं प्रकाशित २८.८.२०११)
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/
http://www.facebook.com/media/set/?set=a.1401902093076.2058820.1398031521
http://younguttarakhand.com/community/index.php?topic=3260.new#new
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
-
उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
-
गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
No comments:
Post a Comment