Monday, August 29, 2011

"पहाड़ बिटि पाती"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
लिख्युं छ, मैं यख नौनौ समेत,
कुल देवतौं की कृपा सी,
कुशल छौं, आशा छ आप भी,
कुशल मंगल ह्वैल्या, अबरी हमारी भैंसी,
लैंदी छ अर भारी दुधाळ भी,
हमारी टक्क तुम फर लगिं छ,
तुम घौर ऐ जाँदा, तस्मै खै जाँदा,
ये सौण का मैना, चौमासू लग्युं छ.
नन्दु अर नारैणु स्कूल जाण लग्यन,
मास्टरजिन दुयौं कू नौं लिख्यालि,
मैकु भारी ख़ुशी छ, तुम भी होला,
माली सारी झंगरेड़ि छ, अर बेली सारी कोदाड़ी,
बल्दु की जोड़ी मेरी माळ्या रखिं छ,
हमारू हौळ तांगळ पदान जी, ख्यास करि लगाणा छन,
फसल पात खूब लगिं छ, ह्वै सकु त घौर औन्दि बग्त,
मैकु एक हरीं साड़ी अर लाल बिलोज,
जरूर ल्हैन, किलैकि बग्वाळ,
श्रीनगर बैंकुंठ चतुर्दसी कू मेळू,
ह्युंद का मैना होला,
आपकी जीवनसाथी.............
(सर्वाधिकार सुरक्षित अवं प्रकाशित २८.८.२०११)
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