(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
तिबारि डिंडाळि उजाड़ि, प्यारू गौं छोड़ि छाड़ी,
कनुकै होलि हे चुचौं, तुमारी खाणी बाणी......
कखन खैल्या हे चुचौं, पहाड़ की सब्बि धाणी,
कखन पेल्या हे तुम, छोया ढुंग्यौ कू पाणी,
क्या तुमारी, वे प्यारा पहाड़, टक्क निछ जाणी?
कुल देवतौं का मंदिर, देवता भि होयाँ ऊदास,
प्यारू गौं छोड़ि चलिगें, आज ऊ छन निराश,
पित्रु का कूड़ा रैगिन, तुमारु देश प्रदेश निवास,
ऐल्या क्या तुम बौडि़क, होला ऊ लग्यां सास,
तिबारि डिंडाळि उजाड़ि, प्यारू गौं छोड़ि छाड़ी,
कनुकै होलि हे चुचौं, तुमारी खाणी बाणी......
अपणु मुल्क त्यागि, जू बल भौं कखि भागि,
खौरि का दिन बितदा, कैकि किस्मत नि जागी,
मैन यूँ आंख्यौंन देखि, मेरा मुल्क पहाड़ की,
धौळ्यौं कू ठण्डु पाणी, जवानी कुजाणि किलै भागी,
जनु भि सोचा तुम, कवि "जिज्ञासु" कू मन,
सोचण लग्युं अफुमा, प्यारू गौं छोड़ि छाड़ी,
तिबारि डिंडाळि उजाड़ि, कनुकै होलि हे चुचौं,
तुमारी खाणी बाणी......
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: १०.८.२०११ )
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/
http://www.facebook.com/media/set/?set=a.1401902093076.2058820.1398031521
http://younguttarakhand.com/community/index.php?topic=3260.new#
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
-
उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
-
गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
No comments:
Post a Comment