Thursday, August 11, 2011

"कनुकै होलि खाणि बाणी"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
तिबारि डिंडाळि उजाड़ि, प्यारू गौं छोड़ि छाड़ी,
कनुकै होलि हे चुचौं, तुमारी खाणी बाणी......
कखन खैल्या हे चुचौं, पहाड़ की सब्बि धाणी,
कखन पेल्या हे तुम, छोया ढुंग्यौ कू पाणी,
क्या तुमारी, वे प्यारा पहाड़, टक्क निछ जाणी?

कुल देवतौं का मंदिर, देवता भि होयाँ ऊदास,
प्यारू गौं छोड़ि चलिगें, आज ऊ छन निराश,
पित्रु का कूड़ा रैगिन, तुमारु देश प्रदेश निवास,
ऐल्या क्या तुम बौडि़क, होला ऊ लग्यां सास,
तिबारि डिंडाळि उजाड़ि, प्यारू गौं छोड़ि छाड़ी,
कनुकै होलि हे चुचौं, तुमारी खाणी बाणी......

अपणु मुल्क त्यागि, जू बल भौं कखि भागि,
खौरि का दिन बितदा, कैकि किस्मत नि जागी,
मैन यूँ आंख्यौंन देखि, मेरा मुल्क पहाड़ की,
धौळ्यौं कू ठण्डु पाणी, जवानी कुजाणि किलै भागी,
जनु भि सोचा तुम, कवि "जिज्ञासु" कू मन,
सोचण लग्युं अफुमा, प्यारू गौं छोड़ि छाड़ी,
तिबारि डिंडाळि उजाड़ि, कनुकै होलि हे चुचौं,
तुमारी खाणी बाणी......
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित दिनांक: १०.८.२०११ )
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