फल फूल रहा है अपने भारत में,
जिसका बढ़ रहा है दिनों दिन आकार,
कुछ भ्रष्टाचारी जेल में हैं आजकल,
सुनते होंगे आप उनके समाचार.....
अपने देश में आखिर,
अन्ना जी ने भ्रष्ट्राचार के विरुद्ध,
अलख है जगाई,
जन जन के मन में,
भ्रष्टाचार के विरुद्ध, चेतना है आई,
पर प्रश्न अभी भी सामने है?
क्या खत्म हो पाएगा भ्रष्ट्राचार,
कुछ तो चाहते हैं, रहे ये सदाबहार....
पग पग पर खड़े हैं आज,
भ्रष्ट्राचार समर्थक दलाल,
जनता क्या करे,
कोई काम करवाना हो,
हो जाते हैं उनके हाथों हलाल,
ताल ठोककर कहते हैं वे,
क्या तुम्हें अपना काम,
नहीं है करवाना,
लगाते रहो चक्कर यहाँ के,
तुम्हें ज्यादा क्या है समझाना.
कामना है कविमन की,
हे भ्रष्टाचार तुम अंग्रेजों की तरह,
हमारे भारत को छोड़ो,
युगों युगों से महान है देश हमारा,
गांधी जी का देश है भारत,
हे भ्रष्टाचारियौं ये कुकृत्य,
सदा सदा के लिए छोड़ो.
स्वरचित: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २२.९.२०११)
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Thursday, September 22, 2011
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ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपने ज्वाइन नहीं किया है. भाई ज्वाइन करो ना. तभी तो पुल बना रहेगा भावनाओं का संवाद बनाये रखने के लिए.
Please remove word verification from your blog.
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