(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
गौं कु तू विकास कर,
तू छैं गौं की शान,
बल गौं विकास की कल्पना,
सच मा छ महान.....
पैंसा देणी द्वी हाथुन,
उत्तराखंड की सरकार,
जन्मभूमि की सेवा कर,
अर कर तू सृंगार.....
गौं का बण बूट कू,
गौं का बाटा घाटौं कू,
बचौण कू कर प्रयास,
गौं का पाणी, धारौं कू,
कर विकास, कर विकास.....
"हे! गौं का प्रधान"
तू छैं गौं की शान........
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २९.९.२०११)
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Y.s. Chauhan जिज्ञासु जी कनि सुंदर आखर लिखि न आपन .........
Saturday at 11:42am · LikeUnlike
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
ज़याडा जी, आप पहले बारामासा फौलो करें फिर आपसे इत्मिनान से बात करनी है.
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