रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
पूछा दौं वे सनै,
जैन पहाड़ छोड़्यालि,
बोललु ऊ, पूछ्लु ऊ,
हिंदी मा,
क्या मतलब छ तेरु?
द बोला, कनु कसूर करि,
क्यौकु पूछि होलु,
मैन त सोचि थौ,
बतालु गर्व सी,
अपणा प्यारा गौं कू नौं....
क्या बोन्न! खौळेग्यौं,
अफुमा, चुप्प चाणिक,
पर मैकु त भलु लगदु,
जब क्वी पूछ्दु ,
"भुला कख छ तेरू गौं"...
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित, दिनांक: १२.१०.२०११)
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
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नरेंद्र सिंह नेगी जी की अभी तीन माह पहले रिलीज अल्बम "अब कथ्गा खैल्यो" का एक गाना भी तो है " अपड़ू सी दिखेणू छै रे लग्णु भली सि मौ कु छै..." (शायद आपको भी पसंद आएगा) में नेगी जी ने अपना दर्द व्यक्त किया है आपकी ही तरह...... एक प्रेरक कविता. आभार!!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रेरक कविता|
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