जिन्हें जिंदगी में है आस,
कभी नहीं होते निराश,
जीवन एक आनंद है,
सुन्दर कर्म करते रहो,
करो स्वर्ग सा अहसास,
आत्महीनता नरक है,
जिसका हल मौजूद है,
आपके पास-आपके पास....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
९.५.१२
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
आस है तो सांस है, सांस है तो जीवन है....... अच्छी कविता. मात् भाषा के प्रति आपका लगाव ठीक है किन्तु हिंदी का फलक बड़ा है....... और आप हिंदी में आ गए हैं, सुखद लगा..... आभार !
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