Monday, May 28, 2012

"तिस्वाळु छ पहाड़"


गंगा यमुना कू मैत,
जख पाणी हि पाणी,
ज्या ह्वै होलु,
गंगा यमुना का मैत्यौं की,
तीसन गौळि छ  ऊबाणी,
कख हर्चिगी धारा मगरौं कू,
ठण्डु-ठण्डु छोया ढुंग्यौं कू,
निकळ्वाणि पाणी,
कसूर मनख्यौं कू हिछ,
जौन पहाड़ का पाणी की,
कदर करि नि जाणी...

बिन पाणी कू मनखि,
कनुकै सुखि रै सकदु,
भटकदु छ ज्यू पराण,
जब खबर मिल्दि छ,
गौं कू धारू सुखिगी,
पाणी की भारी किल्लत छ,
तब सोचा दौं,
अपणा प्यारा गौं,
गर्मियौं मा कनुकै जाण....

जख पाणी हि पाणी,
वख सुख की गंगा,
कनुकै होलु सुपिनु साकार,
पाणी की कदर करा,
पहाड़ मा डाळी बुटळि रोपा,
पाणी का छोयौं कू,
संरक्षण करा,
या भलि बात निछ,
आज "तिस्वाळु छ पहाड़".....
रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़़ा "जिज्ञासु"
ग्राम: बागी-नौसा, पट्टी. चन्द्रबदनी,
टिहरी गढ़वाल, उत्तराखंड.
(सर्वाधिकार सुरक्षित 28.5.12) 

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