Wednesday, May 23, 2012

"कुयेड़ी की चादरी ओढि"

"बादलों  की चादर ओढ़े"

मुझे प्यारा-प्यारा लगे,
मन में मेरे प्यार जगे,
देखता हूँ जब-जब,
अपना प्यारा पहाड़,
छुप जाते हैं कोहरे में,
घर, जंगल और झाड़,
मुझे प्यारा-प्यारा लगे,
बादलों  की चादर ओढ़े,
अपना प्यारा पहाड़.....

बादल गरजे घड़-घड़,
चमके बिजली चम् चम्,
बरखा हुई पर्वतों पर,
भीग गए पर्वतजन,
घर, जंगल और झाड़,
मुझे प्यारा-प्यारा लगे,
बादलों  की चादर ओढ़े,
अपना प्यारा पहाड़...

बस्गाळ्या बरखा लाती,
कोहरे को साथ,
छुप जाता है गाँव प्यारा,
कोहरे की ओट में,
तब, ठिठुरते हैं हाथ,
झूमते हैं पेड़ प्यारे,
जंगल और झाड़,
मुझे प्यारा-प्यारा लगे,
बादलों  की चादर ओढ़े,
अपना प्यारा पहाड़...

 "कुयेड़ी की चादरी ओढि"

मैकु प्यारा-प्यारा लग्दा,
मन मा मेरा प्यार जग्दु,
देख्दु छौं जब-जब,
अपणु प्यारू पहाड़,
लुकि जान्दा कुयेड़ा मा,
घर, जंगळ अर झाड़,
मैकु प्यारा-प्यारा लग्दा,
कुयेड़ी की चादरी ओढ्याँ,
अपणा प्यारा  पहाड़.....

द्योरू गिगड़ान्दु घड़-घड़,
बिजली चम्कदि चम् चम्,
बरखा ह्वै पहाड़ फर,
भिगिग्यन  मनखी सब्बि,
घर, जंगळ अर झाड़,
मैकु प्यारा-प्यारा लग्दा,
कुयेड़ी की चादरी ओढ्याँ,
अपणा प्यारा  पहाड़.....

बरखा ल्ह्यौन्दि दगड़ा अपणा,
स्या पापी कुयेड़ी,
जैंका पिछनै छिपि जाँदा,
हमारा प्यारा गौं,
ठँड लग्दि हात खुट्यौं मा,
झुम्दा छन डाळा बुटळा,
जंगळ अर झाड़,
कुयेड़ी की चादरी ओढ्याँ,
अपणा प्यारा  पहाड़.....
(रचियता एवं गढ़वाली रूपान्तरण कर्ता)
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" 
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २३.५.१२)
लोकरंग फाऊन्डेशन को समर्पित 
www.lokrang.org

Narayan Semwal nice sir g.........................

Manish Mehta वाह बेहतरीन रचना ! पहाड़ को सामने रख दिया आपने

Bhagwan Singh Jayara बहुत सुन्दर भाई साहब ,,,,,



  • Bhishma Kukreti t achkaal hindi pr jor ch
    badhai badhai



  • जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु माननीय कुकरेती जी...जोर त मेरु गढ़वाली फर हिछ पर क्या कन्न, जब क्वी दोस्त हिंदी मा टोपिक लिख्दु त मेरु मन हिंदी कविता लेखन की तरफ चली जान्दु...आपकु हौसला बढौण का खातिर आभार
    25 minutes ago · 

  • Bhishma Kukreti very nice

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