Wednesday, May 9, 2012

क्या बोन्न तब...हे दिदौं, हे भुलौं



अनेक कारणो की एक दवा,
जिसको कहते  हैं हाला,
पीने वाले कहते  हैं,
उसके घर को "मधुशाला",
जब पीता कोई  गले लगाकर,
हो जाता है बल मतवाला,
धन दौलत सब बेकार,
ऐसा बना देती है हाला,
पी रहा हूँ कल्पना में,
आपने जो  है पूछ डाला,
कहते हैं ये प्रेम बढाती,
वहाँ बैर नहीं,
जहाँ होती है  "मधुशाला"....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
९.५.१२  

1 comment:

  1. मधुशाला पर एक अच्छी कविता. आभार !

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