Monday, May 14, 2012

"कुटुम"




पैलि गढ़वाळी,
विडियो फिल्म,
जैंकु प्रदर्शन ह्वै,
मई १९८६ मा,
जैंका निर्माण का,
पचीस साल पूरा होण फर,
युगांतर संस्था न,
आयोजन करि,
एक सभा कू,
ज्व समर्पित थै,
चन्द्र सिंह जी "राही" कू,
गढ़वाल भवन दिल्ली मा...

श्री परासर गौड़ जी की,
पैलि गढ़वाळी फिल्म,
जग्वाळ की चर्चा ह्वै,
मंच संचालक जी,
हिंदी मा ही बोन्न लग्यां  था,
जब "राही" जी सभागार मा ऐन,
ज्या बोलि होलु "राही" जिन,
तब मंच संचालक न गढ़वाळी मा,
बोन्नु शुरू करि...

"कुटुम" फिल्म का,
नायक न बताई,
गढ़वाळी फिल्म मा,
किरदार निभौणु,
एक कठिन काम छ,
पैदा की बात भौत दूर,
नायिका भौत भाऊक ह्वै,
खलनायक जिन भी,
अनुभव बताई,
आपबीती सुणाई,
पच्चीस साल बाद भी,
क्वी खास फैदा कू काम निछ,
गढ़वाळी फिल्म बणौणु,
पर उत्तराखंड सिने जगत,
प्रयासरत छ,
संस्कृति अर संगीत का,
सृंगार का खातिर,
कठिन हाल मा...

श्री कैलाश चन्द द्विवेदी जिन,
"कुटुम" फिल्म निर्माण का बाद,
फिल्म प्रदर्शन की आपबीती,
कठिन डगर अर प्रयास की,
संघर्समय बीती बात बताई,
हर उत्तराखंडी का मन मा,
ममतामयी बयार बगायी...

सन्देश एक ही थौ,
गढ़वाळी  फिल्म की,
एक वी.सी.डी. जरूर खरीदा,
आपका इतना सहयोग सी,
उत्तराखंड सिने जगत कू,
अस्तित्व कायम रलु,
अर प्रयास होलु,
भलि सन्देश प्रदान करदि,
गढ़वाळी  फिल्म निर्माण कू,
समाज का खातिर....
 
उत्तराखंडी सिने "कुटुम" का,
आज क्या छन  हाल,
कठिन छ, डगर अर सवाल,
सोचा! क्या होलु,
भाषा,संगीत अर संस्कृति का बिना,
प्यारा उत्तराखण्ड कू,
भविष्य मा कनु होलु,
आपकु कुमाऊँ अर गढ़वाल.....
रचना(चित्रण कलम सी)-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" 
(सर्वाधिकार एवं सुरक्षित १४.५.१२ 
श्री परासर गौड़ जी की फरमाईस  फर  मैन या गढ़वाली कविता, अन्ख्यौं देखा हाल का रूप मा लिखि अर प्रेषित करि.

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