Tuesday, January 29, 2013

"धन सिंह"


धापड़ी खाण लग्युं थौ,
वैकु क्वी  भट्याण लग्युं थौ,
औ हे झटपट, भुला हे धन सिंह,
आज हम्न जाण भौत दूर,
चन्द्रबदनी मंदिर  का न्योड़ु,
मोल्ठा, कैलोगी, भराड़ी धार,
जख बल काफ़ळ पक्याँ हपार...
जब पौंछ्यन ऊ बांज का बण मा,
देख्यन ऊन पक्याँ  काफ़ळ,
चढ्यन धमा धम ऊ डाळौं मा,
पैलि खैन काफ़ळ लाल रसीला,
काचा पाका ठोबरी फर,
फेर खैन भ्वीं मा लोण राळिक,
अचाणचक्क! लखि बखि बण मा, 
दूर कखि रिक्क खिंक्याई,
घौर भागिन फाळ मारिक...
धन सिंह की ज्युकड़ी तब बल,
जोर जोर सी धक्द्याई,
कुल देव्तौं की वैकु याद आई,
ऊँचि धार ऐंच बैठि  थौक खाई....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लाग पर प्रकाशित,
३०.१.२०१३  

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल