Monday, January 14, 2013

"कविमन कू दर्द"

कविता का रूप मा,
प्रगट करदु छ कवि,
अपणि कलम सी,
आखर लिखिक,
कोरा कागज फर,
अनुभूति का रूप मा....
जन्मभूमि छोडण कू दर्द,
कर्मभूमि मा,
प्रवास भुगतण  कू दर्द,
भाषा की दुर्गति कू दर्द,
विलुप्त होन्दि संस्कृति कू दर्द,
जन्मभूमि पहाड़ फर,
पैदा होन्दि प्राकृतिक,
बेदर्द आफत कू दर्द,
बिना बात पहाड़ की,
शान मा खलल पैदा करदा,
लोभी मनख्यौं का,
मचैयाँ उत्पात कू दर्द,
हिमालय का चून्दा,
तरबर आँसू कू दर्द,
गंगा यमुना का,
बगण का बाटा मा,
खलल पैदा होण कू दर्द,
प्रदूषण का कारण,
प्रकृति मा पैदा होंदा,
विकार कू दर्द,
उजड़दा बजेंदा घर गौं की,
दुर्गति कू दर्द,
टूट्दा रिश्तों की डोर,
बिखरदु समाज,
आधुनिकता कू आडम्बर,
संवेदनहीनता कू दर्द,
बेटी एक बोझ छ,
मनख्यौं का मन मा,
पैदा होन्दि गलत बात,
जू एक दर्द छ,
कविता का रूप मा,
"कविमन कू दर्द"....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
 सर्वाधिकार सुरक्षित ब्लॉग पर प्रकाशित,
14.1.2013 

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