Friday, April 8, 2011

"ढुंगू ह्वैगि पराण"

दुनियां का दिन देखि,
सैडी जिंदगी भर,
फाळ मारदु-मारदु,
कळ्त बळ्त करदु करदु,
भिन्डी की चाह मा,
अजौं तक नि भरे ज्यू,
खबानी किलै, केका खातिर.

भेद कू पता नि लगि,
कैन सताई, कैन पिथाई,
बणिन बाठ रोड़ा,
जऴिन ज्युकड़ी जौंकी,
सेळि नि पड़ी,
बुरू सोचिक, करिक भी,
पर "ढुंगू ह्वैगि पराण",
दुनियां तेरा हाल देखिक.
सच नि छैं तू,
सब मायाजाल छ.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: ८.4.२०११'
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल