कवि "जिज्ञासु" की नजर में,
बुरांस पहाड़ की शान है,
हर उत्तराखंडी को,
उस पर अभिमान है.
वो पहाड़ पर ही,
रहता और खिलता है,
प्रवासी उत्तराखंडियों को,
उसका रैबार मिलता है.
ऋतु बसंत में,
लौट आओ....
मैं तुम्हारे मुल्क में,
हिमालय को निहार कर,
मुस्करा रहा हूँ,
जन्मभूमि आपकी,
और मैं,
आपको याद दिला रहा हूँ.
फिर न होगा जन्म यहाँ,
न जाने वो कौन सा देश होगा,
पर्वत और मैं,
शायद वहाँ नहीं होंगे.
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: १८.४.२०११'
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Tuesday, April 19, 2011
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