Tuesday, April 19, 2011

"दारू अर खारू"

बोन्न लगिं छ बोडी,
तिबारी मा बैठी,
हे चुचों!
कनि मति मरि तुमारी,
क्यौकु होयुं छ,
रात दिन तुमकू,
"दारू अर खारू",
जरा! सोचा मन मा,
देवतों कू मुल्क छ,
उत्तराखण्ड हमारू.

ब्यो हो या बारात,
पेन्दा छैं तुम,
दिन हो या रात,
करदा छैं हो हल्ला,
मचौंदा छैं उत्पात,
मेरी दानी बात माणा,
भलि निछ या बात,
कैकु भलु,
आज तक नि ह्वै,
"दारू अर खारू" पीक.

रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: १८.४.२०११'
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)

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