Wednesday, April 27, 2011

"हमारा गौं का हळ्या"

अब चकड़ीत ह्वैग्यन,
हौळ लगाणु छोड़िक,
ऊ भि परदेश चलिग्यन,
सैडा गौं कु हौळ अब,
द्वी तीन हळ्या,
अर वथगा हो जोड़ी बल्द,
लगौणा छन,
हौळ क्या बोन्न!
मोळ माटु बोला या काटु,
कना छन,
धरती मा अब,
मन्ख्यौं क़ू विस्वास नै रै,
नरक रुपी नौकरी भलि,
सब्यौं क़ू विचार छ,
आज क़ू आधार छ,
नयाँ जमाना की रंगत,
बिंगा थौळ छ,
निरर्थक हौळ छ,
हर्चण लग्यां छन अब,
"हमारा गौं का हळ्या".
रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
दिनांक: २६.४.२०११
@सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित

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