Monday, August 13, 2012

"क्या बोन्न तब, कविमन का ऊमाळ"


बुढ़ापा का दिन,
बौड़ि ऎगिन,
क्या पाई?
क्या खोई जग मा?
अपणा भी अब,
दूर ह्वैगिन,
जौं फर थौ सारू हमारू,
जिंदगी अब,
यनि लगणि छ,
जन हो मुंड मा,
बोझ अर भारू,
हे! बद्रीविशाल जी,
अब तू ही छैं,
रक्षपाल हमारू,
पर यु ह्वक्का,
असली दगड़्या,
बीच मा जू धरयुं हमारू....
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" 
(रचना सर्वाधिकार सुरक्षित एवं ब्लॉग पर प्रकाशित)
१३.८.२०१२ 
तस्वीर: श्री शूरवीर सिंह रावत, पत्रकार और ब्लागर जी का सौजन्य सी। 

4 comments:

  1. जयाडा जी, ये फोटो और नेगी जी के गीत की वो दो पंक्तियाँ " यूं दानी आन्ख्यूं माँ झम झम पाणी......." मैंने ही फेसबुक पर डाली थी और आपने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर दिया. फिर उसका उल्लेख करना भी आपने उचित नहीं समझा. आश्चर्य है..... इसे मै क्या समझूं ? भूल या......?

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  2. जयाडा जी, ये फोटो और नेगी जी के गीत की वो दो पंक्तियाँ " यूं दानी आन्ख्यूं माँ झम झम पाणी......." मैंने ही फेसबुक पर डाली थी और आपने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर दिया. फिर उसका उल्लेख करना भी आपने उचित नहीं समझा. आश्चर्य है..... इसे मै क्या समझूं ? भूल या......?

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    1. रावत जी नमस्कार, क्षमा चांदु, मैसी भूल ह्ववेगि या घंघतोळ, देव हि जाणु। आपन मैकु बताई, हिरदय सी आभार। अब संशोधन करिक आपकु नौं लिखणु छौं।

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  3. जयाडा जी, ये फोटो और नेगी जी के गीत की वो दो पंक्तियाँ " यूं दानी आन्ख्यूं माँ झम झम पाणी......." मैंने ही फेसबुक पर डाली थी और आपने अपने ब्लॉग पर प्रकाशित कर दिया. फिर उसका उल्लेख करना भी आपने उचित नहीं समझा. आश्चर्य है..... इसे मै क्या समझूं ? भूल या......?

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