Thursday, August 2, 2012

"रौंत्याळि अखोड़ी"



आंख्यौं मा बसिं छ,
पराणु सी प्यारी अखोड़ी,
नौ खम्ब्या तिबारी जख,
चौक मा लैंदी भैंसी गौड़ी.....
इन्द्रमणि जी की जन्मभूमि,
स्या प्यारी अखोड़ी,
धन धन हे बडोनी जी,
चलिग्यन जन्मभूमि छोड़ी....
उत्तराखंड कू सुपिनु देखि,
कल्पना आज होयिं साकार,
धन होयिं छ प्यारी अखोड़ी,
बडोनीजिन करि उपकार.... 
अति प्यारू लग्दु छ,
अखोड़ी कू दुमका बाजार,
कथगा प्यारी रौंत्याळि छ,
अखोड़ी मा ताल की धार...
महादेव कू खंभ ल्ह्यौन्दा,
अखोड़ी का लोग रन्दा अग्वाड़ि,
भारी लंगट्यार लगि जांदी,
जख हेरदु जावा पिछ्वाड़ि...
अखोड़ी मा जब झंडा लगि जान्दु,
फिर शुरू ह्वै जांदी छ रामलीला,
रणभूत नाचौन्दा छन जख,
धूमधाम सी होंदी पांडव लीला...
चौ दिसौं रौंत्याळि अखोड़ी,
देवी देवतौं कू छ वास,
नागराजा, नागेला, नरसिंग, 
घण्ड्याळ जी पूरी करदा आस....
सोळा जाति का लोग,
करदा छन अखोड़ी मा वास,
दूर परदेश मा भी छन,
औन्दा छन अखोड़ी का पास..... 
दूर देश मा बसीं रंदि,
मन मा  रौंत्याळि अखोड़ी,
खुद लगदि ऐ जांदा,
आँख्यौं मा आंसू बौड़ी...
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
अखोड़ी निवासी श्री बी. यस. रावत जी के अनुरोध पर रचित मेरी रचना "प्यारी अखोड़ी"
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २.८.२०१२) 

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