Thursday, August 30, 2012

"अतीत,वर्तमान,भविष्य"


(अतीत)
पैलि बल सात हाथ का,
लम्बा जूता होन्दा था,
भड़ सरीखा मन्ख्यौं का,
गढ़ देखि होला आपन,
गढ़वाळ मा,
कनुकै उठै अर चीणि होला,
बड़ा बड़ा ढुंगा,
तब्बि न,
यना रै होला हमारा पुरखा...

क्या बोन्न तब,
अब कूड़ा पुंगड़ा,
आबाद नि रखि सकणा छन....
 
(वर्तमान)
अजग्याल सबसि प्यारी,
वर्तमान की बात छ,
मोबाइल कू धारण,
बोडा हो या बोडी,
दादा हो या दादी,
बुबा जी होन या माँ जी,
सब्ब्यौं की इच्छा रन्दि,
मोबाइल जरूर हो,
नौना,नौनी,नाती, नतणौं,
भला बुरौं दगड़ि,
ज्यू भरिक कन्न कू...

हे ! राम पैलि,
ज्युंदा मरयां की खबर,
गौं तक जाण मा,
मैना लगि जांदा था,
जू क्वी दगड़्या,
गौं नि जै..... 
 
(भविष्य)
पुनर्जन्म जब होलु,
कै जन्म का बाद,
उत्तराखंड का मन्ख्यौं कू,
ह्वै सकदु,
गंगा तब बगणि होलि,
गाड बणिक,
हरिद्वार बिटि,
ऋषिकेश देवप्रयाग की तरफ...

ह्वै सकदु जख हिमालय छ,
वख सागर हो,
तैथिस सागर की तरौं,
जू हम्न नि देखि,
सुणि अर पड़ी छ...
-जगमोहन सिंह जयाड़ा(जिज्ञासु)
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित) 30.8.12 
इन्टरनेट कुमाउनी व गढ़वाली साहित्यकारों व कुमाउनी व गढ़वाली साहित्य के लिए एक वरदान है और इस माध्यम से नए नए साहित्यकार सामने भी आयें हैं . नए साहित्यकारों का आना दोनों भाषाओं के लिए सौभाग्य कि बात है . किन्तु मैंने पाया कि अधिकतर साहित्यकार सौ साल पुराने विषयों को ही उठा रहे हैं.
माननीय कुकरेती जी की यीं बात फर प्रातक्रिया स्वरुप मैन या कविता लिखी...अतीत, वर्तमान अर भविष्य फर.... 


Bhishma Kukreti आपकी भूत , वर्तमान , ar भविष्य कि कविता बांच बढिया कोशिश च कि
भविष्य कि त्र्फान नजर च

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