Monday, August 27, 2012

"पहाड़ फर आफत"


आज किलै आई?
अँधेरी रात मा,
द्योरू गिड़गिड़ायी,
धौळी का धोरा बस्याँ,
उत्तराखंडी भै बंधो फर,
जन उत्तरकाशी मा,
भारी आफत आई,
रक्षा करा,
हे! बद्रीविशाल जी,
हे! कुल देव्तौं,
लौल पुकार मचाई...

कैन चलि चाल?
देखदारौं की,
समझ मा नि आई,
कूड़ी पुंगड़ि बग्यन,
क्वी मौत मुख मा समायी,
जैकी रै बच्वारि,
वेन अफु या कैन,
 वैकी जान बचाई,  
मेहरबानी उंकी छ,
जौन लालच मा पहाड़,
कच्च्याई, ठक्कट्याई...

यनु त होण ही थौ,
तुमारा गौं मा,
सैणी सड़क जू आई?
डाळा कटेन, माटु बगि,
रगड़ा ऐन, पाखा रड़्यन,
तुमारु मन,
दूर देश जाण कू रग्र्याई,
जू रैन जन्भूमि मा,
ऊँ फर त आफत आई...

प्रकृति मा खलल,
भारी बुरी बात छ भाई,
या कवि(जिज्ञासु) मन की,
जीवनकाल की,
आंख्यौं देखि कल्पना छ,
बिंगा अर बिंगावा,
चिपको कू जन्म,
हमारा उत्तराखंड मा ह्वै,
पहाड़ कू सृंगार करा,
पहाड़ कू अन्न पाणी, 
खूब खाई,
क्या एक डाळी रोपि,
जन्भूमि, देवभूमि मा,
या जिंदगी मा लगाई? 
-जगमोहन सिंह जयाड़ा (जिज्ञासु
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)


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