Tuesday, August 21, 2012

"लगोठ्या, बाखरा अर कुखड़ा"


हमारा मुल्क खंकळुन खैन,
फ़ोकट मा पेट भन्या,
भला मनखि देख्दु रैन,
अपणा मन मा,
ऊदास नि ह्वेन.....

भूत, भूतेड़ा, चेड़ा, चेटगा,
जौं पूजण का खातिर,
बिपदा का मरयाँ  मनखि,
लगोठ्या, बाखरा, कुखड़ा  ल्हेन,
हे राम! क्या बोन्न तब?
ऊ भि खंकळुन खैन,
भला मनखि देख्दु रैन,
अपणा मन मा,
ऊदास नि ह्वैन.....

नागराजा, नरसिंग, भैरू, काली,
जौं पूजण का खातिर,
लोग लगोठ्या बाखरा ल्हेन,
सैत देब्ता भौत खुश ह्वैन,
खंकळु की बेथ भर की जीब,
बल लब-लब लब्लेन,
भला मनख्यौंन चाखण्यां,
खंकळुन पेट भन्या,
लोतगी मोतगी  खैन....

कब तक मरेला,
लगोठ्या, बाखरा अर कुखड़ा?
खंकळ देब्ता या भूत बणि जांदा,
तब भला मनखि,
ज्यू भरिक खान्दा,
हमारा मुल्क वे उत्तराखंड....
रचियता: जगमोहन  सिंह जयाड़ा (जिज्ञासु)
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित २१.८.१२) 

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