Thursday, May 5, 2011

"टिहरी डाम"

जैकी छ हाम,
किलैकि वैका कारण,
बिगळेन मनखी,
दुखेन ऊँका दिल,
यनु भी बोल्दा छन ऊ,
पड़ी हमारी पीठी मा,
मुछाला कू सी डाम.

जी या बात सच छ,
पूछा ऊँ सनै,
क्या ख्वै क्या पाई?
निर्दयी था ऊ,
जौन योजना बणाई,
पहाड़ कू पाणी,
दूर दिल्ली तक पौंछाई,
बिजली बणनी छ,
वा पहाड़ छोड़िक दूर,
ऊँका घौर रोशन कन्नी छ,
जौंकु हक्क कतै निछ,
जौंकु थौ ऊँका घौर,
कखि रोशन त होला,
पर दिल मा दर्दयाळु अंधेरु,
"टिहरी डाम" का कारण.

रचनाकर: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
दिनांक: ५.५.२०११

No comments:

Post a Comment

मलेेथा की कूल