Monday, June 6, 2011

"धरती आज बिमार छ"

(जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ५.६.२०११)
सच मा, क्वी नि सोच्दु,
मनख्यौं का अत्याचार सी,
गंगा, हिमालय, बसुन्धरा,
जल, जंगल त्रस्त छन,
अजौं भि सोचा? कुछ नि बिगड़ी.....
पहाड़, हिमालय आज कूड़ा घर बणिगी,
कब्रगाह भि बणिगी, जब बिटि मानव दखल बढिगी,
वृक्ष विहीन प्यारू पहाड़, धरती कू ताप बढिगी,
प्रकृति कू रौद्र रूप, बस्गाळ-२०१० मा देखि होलु आपन,
देवभूमि उत्तराखंड की धरती मा, उत्पात करिक चलिगी,
संकल्प लेवा धरती का सृंगार की, क्या बोन्न?
"धरती आज बिमार छ", हे मनखी तेरा कारण.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित )

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