Wednesday, June 8, 2011

"खंड्वार"

(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ८.६.२०११)
हेरदा छौं जब हम, अपणा प्यारा गौं मुल्क मा,
मन मा ख्याल औन्दु छ, कबरि बणै होलु कैन,
बड़ा अरमान सी, तब बैठि होलु छज्जा, देळि मा,
हेरि होलु ऊँड फुन्ड, प्यारा डांडा काँठौं जथैं प्यार सी,
पर क्या कन्न! आज ऊ मनखी, होला कखि स्वर्ग मा,
माटा कू शरीर छोड़िक, दूसरू धारण करिक,
पर ऊंकू बणवैंयु घौर, आज टूटिक "खंड्वार" होयुं छ,
जमिं छ कण्डाळि, बांजा चौक मा रिटणि छ बिराळि,
आंसू भि आँखौं मा ऐ जाँदा छन, "खंड्वार"हेरि हेरि.

कबरि कखि तस्वीर मा, हेरदा होला आप चांदपुरगढ़ी,
"खंड्वार" होयां देवभूमि उत्तराखंड मा, देवतौं का भव्य मंदिर,
बावन गढ़ु का अवशेष, "खंड्वार" होयिं तिबारि अर डिंडाळि,
अहसास होंदु छ मन मा, बणनु बिगड़नु यीं धरती मा,
"खंड्वार" बणिक मिटि जाणु, बल कालजई सच छ,
पर "खंड्वार" भलु नि लगदु, कवि "जिज्ञासु" तैं सच मा.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित, दूरभास: 09868795187)
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