Monday, June 13, 2011

"जीवन गीत छ"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
सब्बि मन्ख्यौं कू, यीं धरती मा,
सुख, दुःख साथ छन, सुर, लय, ताल भी,
कबरी जीवन जंजाळ, कबरी भारी सुन्दर,
क्वी सुख मा, क्वी दुख मा,
जीन्दू छ जीवन, कै भी हाल मा....
मन हो चंचल, फूल मिल्वन या कांडा,
ईश्वर कू नौं सदानि लेवा,
ज्ञान की गंगा मा रमिक, सब कुछ भूलिक,
सुख शांति कू प्रसार, कैकु मन न दुखावा,
धरती मा सब सुख छन, दुख का दगड़ा,
प्रकृति कू सृंगार,पंछी पोथ्लों कू प्यार,
मन्ख्यौं की मनख्वात,
क्या-क्या निछ? सोचा मन मा,
"जीवन गीत छ" सच मा, अहसास करा...
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १३.६.२०११)
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