Thursday, June 16, 2011

"पराण"

(रचनाकार: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु")
प्यारू होन्दु छ सब्यौं तैं, यनु बोल्दा छन,
सब्बि डरदा छन बल, सच मा सदानि मन्न सी,
फिर भी मरदा छन, काल का हाथुन मौत बेमौत,
झुर्दु छ, डरदु छ, रगबग करदु छ, कौ-बौ भी करदु,
इच्छी सी पीड़ा न लगु, देह मा कखि, सोचदु रंदु,
धरती कू हर जीव, मनखि त सबसि ज्यादा,
जैकु "पराण" भौत प्यारू होंदु छ........
यीं धरती सनै सच समझिक, जन सदानि रण हो यख,
जू सच निछ, कै भी मायना मा, मनखि का खातिर,
ये मायारुपी संसार मा, फेर भी "पराण" प्यारू होन्दु छ.
जू कबरी भी उड़ी जान्दु छ बिन बतैयां, पोथला की तरौं.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित १६.६.२०११)
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