(रचना: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु २३.६.२०११ )
क्वी नि सुणदु!
जैमा आस्था छ हर इंसान की,
पवित्रता का कारण,
जू आज वीं तैं, अपवित्र कन्ना छन,
सोचा! क्या कसूर छ माँ गंगा कू?
आज अस्तित्व की लड़ै लड़नी छ,
मन्ख्यौं का तन मन कू मैल धोण वाळी गंगा,
आज मैली ह्वैगि, असहाय होयिं छ,
जै़का खातिर राजा भागीरथ जिन,
करि थै कठिन तपस्या,
तब अवतरित ह्वै भारत भूमि मा,
पुरखों का उद्धार का खातिर,
हे इंसान! करा भागीरथ प्रयास,
माँ "गंगा की पुकार" सुणा.
(सर्वाधिकार सुरक्षति एवं प्रकाशित)
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गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Friday, June 24, 2011
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