Monday, June 6, 2011

"तिस्वाळु सी रैग्यौं"

(जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" ५.६.२०११)
कै बरसु बिटि टक्क लगिं थै, कब होलि मेरी आस पूरी,
आस जगि जब न्यौड़ु देखि, किस्मत देखा रैगि अधूरी....
फेर सोचि मन मा, हे! भाग मेरा, कनि होन्दि तेरी भताग,
हे जळ्दि छ जळौण्या ज्युकड़ी, झौळ सी लगदि जनि हो आग....
"तिस्वाळु सी रैग्यौं" देखा दौं भाग, किस्मत कनि छ माया तेरी,
दुःख भिछ हे आस अधूरी, रैगि तिस्वाळु मन कनि गति तेरी.....
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित )
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