Monday, June 20, 2011

"क्वी होंदु मेरु"

(कवि: जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" १९.६.२०११)
बोल्दा छन लोग, जब आफत की घड़ी औन्दि,
या जिंदगी कैकु, बुरा बगत खूब रुऔन्दि,
वनु क्वी कैकु नि होंदु, या दुनिया की रीत छ,
पर फिर भी इंसान की, यनि आस अर प्रीत छ,
इंसान धरदु छ बल, यनु अपणा मन मा सारू,
यीं धरती मा, हे भगवान! जू क्वी होंदु हमारू,
हर इंसान की या हि, अपणा मन की आस छ,
निभ्वन नाता रिश्ता, यथार्थ बिंगणु बल ख़ास छ,
अहसास करदा होला आप, "क्वी होंदु मेरु",
कवि "जिज्ञासु" की कल्पना, हे प्रभु सारु तेरु.
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित)
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