Tuesday, April 2, 2013

"एक दिन यनु भी आलु"

जिंदगी मा जेब भरदु भरदु,
एक दिन यनु आई,
सक्या समर्थ नि रै देह मा,
प्राण पोथ्लु सी ऊड़ि ग्याई,
कठ्ठा ह्वैन भला बुरा सब,
ऊन अर्थी हमारी सजाई,
कविताओं कू कायल मेरी,
एक प्यारू दगड़या आई,
सब्यौं कू बोलि वैन,
जरा कवि कू किस्सा टटोल़ा,
किस्सा फर कुछ नि मिलि,
होण लगि रौला धौला,
कैन बोलि क्या मिन्न थौ,
वैकु कविताओं कू लोभ थौ भारी,
पैंसा टक्का का फेर मा नि रै,
बस या हि थै वैकी लाचारी,
भलु भौत रै वैकी कविताओं सी,
लग्दि थै मन मा कुतग्याळी भारी,
आज चलिगी यीं धरती सी,
स्वर्ग मिल्यन हे बद्रीविशाल जी वैकु
आपसी सी अर्ज छ हमारी....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
रचना सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित
3.4.2013

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