Monday, April 8, 2013

"हे चुचा ! त्वैन खै नि जाणि"




सदानि तू यनु हि रयैं,
एक मौका मिलि थौ त्वैकु,
भै बंधु की कृपा सी,
जौंकु त्वैन लगोठ्या बाखरा,
छुद्या करिक खलैन,
दारू का गैलण अर बोतळ,
अपणा हाथुन पिलैन,
यीं आस मा,
प्रधान बणिक मैं अपणु,
अपणि ग्राम सभा कू,
लोगु की नजर मा विकास,
ब्लाक का पैंसा सी करलु.....


त्वैकु माया मिलि न राम,
फैदा उठैग्यन चक्कड़ीत,
परसेंट खाण वाला,
अर तेरा सल्वै दगड़या,
अपणि गेड़ी कू खर्च करयुं भी,
क्या हसूल करि होलु त्वैन?
तेरी इमानदारी बतौणि छ,
" हे चुचा ! त्वैन खै नि जाणि"....

-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
रचना सर्वाधिकार सुरक्षित, ब्लॉग पर प्रकाशित,
8.4.13

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