Monday, April 15, 2013

"थमाळी"

जैंकु रूप देखिक यनु लगदु,
काटदि होलि या,
लगोठ्या बाखरौं की धौण,
कै मनखि का हाथु सी,
काल बणिक......
 
लगोठ्या बाखरा,
जू कैकु कुछ नि बिगाड़दा,
घास पात ही खान्दा,
मनखि स्वाद का खातिर,
रड़कै देन्दा उंकी धौण,
लोखर की थमाळीन.....

कै मनखि जब,
गुस्सा मा थमाळी,
कै फर माप्यौन्दा,
द्वी चार भै बंध,
कठ्ठा ह्वैक समझौंदा,
पर उबरि न,
जब लगोठ्या बाखरौं की......
धौण थमाळीन रड़कौन्दा,
कछमोळी, रस्सी, भात,
शिकार खाण कू,
मन मा भारी खुश होन्दा,
क्या बोन्न "थमाळी"?
तेरी माया अपार छ,
लगोठ्या बाखरौं की,
धौण की तू दुश्मन.......
 
-जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु"
रचना सर्वाधिकार सुरक्षित,
ब्लॉग फर प्रकाशित
तस्वीर श्री करण सिंह कथायाट, पिथौरागढ़  

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