Thursday, October 30, 2014

क्‍यौकु बोल्‍दा....

    तुम क्‍यौकु बोल्‍दा हे भुलौं.......
    गौं का मनखि, सब चलिग्‍यन,
    पंछी पहाड़ का, गौं मा हि रैन,
    कैकु छ पहाड़ प्‍यारु,...
    तुमसि भला ऊ पोथ्‍ला हिछन,
    जौन पहाड़ कतै नि छोड़ी,
    सच मा बोला, मुक्‍क नि मोड़ी,
    पहाड़ का पंछी छन पहाड़ी,
    तुम क्‍यौकु बोल्‍दा हे भुलौं.......

    -कवि "जिज्ञासु" का मन का ऊमाळ
    14.10.2014

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