Thursday, October 30, 2014

मैं दिल्ली हूँ..

    मैं दिल्ली हूँ...!
    मैं दिल्ली हूँ -
    लेकिन दिल कहीं नहीं है..!
    दर्द की दुकानों में-...
    नफरत भरी है.
    मैं दिल्ली हूँ -
    ये मैं नहीं..
    जिज्ञासु कहते हैं,
    दर्द से भरे
    बस आहें भरते हैं.
    ना इंसान है यहाँ-
    न इंसानियत ही है...!
    बेवजह की बस-
    एक भागमभाग है.
    मैं दिल्ली हूँ -
    लालकिला है लेकिन-
    कोई लाल नहीं दिखता
    क़ुतुब मीनार कोई
    छू नहीं सकता
    सुबह शाम की राशन
    का बस एक खेल है-
    मैं दिल्ली हूँ -
    जिज्ञासु के लिए जेल है.
    हाँ भई सच में-
    यहाँ बड़ी झेल है-
    दिल्ली में दिलों का
    बड़ा बेढंगा खेल है.
    मैं दिल्ली हूँ -....?
    अधुरी कल्पना,
    अधूरा मेल है-
    मैं दिल्ली हूँ -
    यहाँ सब सेल है....(मनोज इष्टवाल)

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