Thursday, October 30, 2014

उजाळु....

    उजाळु....
    आज कू,
    भलु नि लगणु छ,
    सब्‍बि धाणि ह्वैक भी,...
    टरकणि हि टरकणि...

    ख्‍याल औन्‍दु,
    मन मा जब,
    वा अंधेरी रात ही,
    भलि थै, भलि थै...
    मनख्‍यौं मा मनख्‍वात थै,
    प्‍यार भरी बात थै,
    छल कपट, दूर की बात,
    आज का उजाळा सी,
    भलि वा रात थै......
    -कवि जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" की अनुभूति
    29.9.2014, दूरभाष: 09654972366

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