Thursday, October 30, 2014

गढ़वाळ का ढुंगौं मा बैठि....

    गढ़वाळ का, ढुंगौं मा बैठि,
    मन खुश होन्‍दु छ भारी,
    मुल्‍क छुटिगी, पोटगि का बाना,
    होयिं छ भारी लाचारी....
    ...
    -कवि जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" की अनुभूति
    01.10.2014, दूरभाष: 09654972366

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