Monday, April 11, 2016

गुरौं न पाळा.....



तड़कौन्दा छन,
बात समझ नि औणि,
देखणा होला उत्तराखंड तैं,
व्यथा छ वेकी बतौणि?


हात काटिक दिनि था तुम्न,
सी छन मौज मनौणा,
आस तुमारी मार्यालि तौन,
अपणि मवासि बणौणा.....


पाड़ कू बिकास तौन नि कन्न,
अजौं भी चेति जावा,
बजेंदा उत्तराखंड कू तुम,
हातुन भाग बणावा.......


गेर भरेणि निछन तौंकी,
दूध कतै न पिलावा,
तौंका बिस सी दूर रयन तुम,
अजौं भी बिंगि जावा.....


दुमुख्या छन गिच्ची तौंकी,
तुमतैं छन भरमौन्दा,
बंजेदा पहाड़ की छ्वीं सी,
मन सी तब बिसरौन्दा.....


वंत सी अलग दिखेन्दा,
मिलि जुलिक खांदा,
खांदि बग्त पांची आंग्ळा,
जन दगड़ा ह्रवै जांदा......


गुरौं न पाळा भला का खातिर,
तौं तैं किनारा लगावा,
पहाड़ का होनहार ज्वानु तैं,
पहाड़ की डोर थमावा......


-जगमोहन सिंह जयाड़ा 'जिज्ञासू',
ग्राम: बागी नौसा, पट्टी- चंदवदनी,टिहरी गढ़वाळ, उत्तराखंड।

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