Monday, April 11, 2016

गुमखाळ......




ऊंचि धार ऐंच छ,
जख होंदु बथौं कू फफराट,
जू मनखि वख रंदन,
ऊंका छन भला ठाट.....


गुमखाळ सी पैलि,
दिखेन्दि छ कुळैंयौं की लंगट्यार,
मन भारी रंगमतु होन्दु तौं देखिक,
देन्दि छन अथाह प्यार....


रौंस सी लग्दि भारी,
जब पार करदा छौं हम ऊकाळ,
दूर बिटि अति प्यारु लग्दु,
धार मा बस्युं गुमखाळ.......


चौदह फरवरी 2016 कू गयौं,
मैं, श्री सुनील नेगी, श्री विनोद नौंटियाळ,
हम्तैं दूर बिटि देखिक हैंसणु थौ,
रौंत्याळु प्यारु गुमखाळ.....


अहसास होणु थौं हम्तैं,
स्वर्ग सी भी सुंदर छ पहाड़,
गुमखाळ की डांड्यौं मा,
चौदिशु दिखेणा जंगळ झाड़....


जब लौटिक दिल्ली जथैं अयौं,
मन होणु थौ भारी ऊदास,
सोचण लग्यां था मन मा,
गुमखाळ कब औला तेरा पास......


-जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासु
गुमखाळ फर मेरा कविमन कू कबलाट,
दिनांक 14.2.2016

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