Monday, April 11, 2016

गुमखाळ की डांड्यौं तक....




12-2-16 बिटि 14-2-16
मनखि यीं दर्द भरी दिल्ली मा पिंजड़ा कू पंछी बण्युं रंदु। मैं जनु मनखि मौका खोज्दु छ कब जौं अपणा मुल्क प्यारा उत्तराखण्ड जथैं। श्री शोबन सिंह महर जिन मैकु बताई, जयाड़ा जी मेरी नौनि कू ब्यो् दिनांक 12.2.2016 कू कोटद्वार मा होण। आप सादर आमंत्रित छन अर आपकु कार्ड श्री सुनील नेगी जी मु दिन्युं छ। मैंन बोलि भैजि मैं जरुर औलु।

दिनांक 11.2.2016 कु मैंकु श्री सुनील नेगी जी कू फोन आई, आप 12 फरवरी कू श्री विनोद नौटियाळ जी का कार्यालय मा सुबेर 10 बजि तक पौंछि जैन। नौटियाळ जी दगड़ि भी मेरी बात ह्वै। कार्यक्रम का अनुसार मैं 12 फरवरी कू मैं नौटियाळ जी का कार्यालय मा पौंछ्यौं। कुछ देर बाद नौटियाळ जी कार्यालय मा ऐन अर मेरी ऊंका दगड़ि सेवा सौंळि ह्वै। नौटियाळ जी का कार्यालय मा बैठिक मैकु अपणापन कू अहसास होणु थौ। मैंन अपणा मन मा चिंतन करि कि या सौभाग्य की बात छ, मान्यवर नौटियाळ जी मेरा पहाड़ का चिरपरिचित उद्यमी छन। थोड़ा देर बाद मान्यवर सुनील नेगी जी भी पौंछिग्यन। नेगी जी अर नौटियाळ जी दगड़ि मेरु परिचय फेसबुक का माध्यम सी थौ। कवि सम्मेलन, सामाजिक अर सांस्कृतिक कार्यक्रम का दौरान मेरी समय समय फर ऊंसी मुलकात होंदि थै। आज मेरु सौभाग्य थौ कि मैं कोटद्वार द्वी दगड़यौं दगड़ि जाण लग्युं थौ।

12
बजि हम्न कोटद्वार जथैं प्रस्थांन करि। नौटियाळ जी अपणि गाड़ी चलौण लग्यां था। छ्वीं बात्त कू दौर शुरु ह्वै। नौटियाळ जिन नौकरी सी ल्हीनक उद्यमी तक कू वृत्तांत सुणाई। हम ऊलार मा था अर मंजिल की तरफ सड़क मार्ग सी गतिशील गाड़ी मा जाण लग्यां था। रस्ता मा हम एक जगा रुक्यौं अर रोठ्ठी पाणी खैन। वीं जगा का ओर पोर आम का डाळा, हरा भरा पुंगड़ा, फूल्यां लय्या का फूल मनमोहक लगण लग्यां था। कुछ देर बाद हम्न कोटद्वार की तरफ प्रस्थान करि। सड़क का धोरा प्रकृति का नजारा हम्तैं लुभौण लग्यां था। आज बंसत पंचमी कू दिन थौ। विनोदि स्वभाव का नौटियाळ जिन आई पंचमी मौ की....गीत सुणाई अर वेका अलावा पांरपरिक गीत भी। भौण सुरीली थै अर आनंद कू अहसास चल्दि गाड़ी मा होण लग्युं थौ। पता भी लगि कि नौटियाळ जी गीत भी गांदा छन भलि आवाज मा।

लगभग सात बजि रात हम कोटद्वार गणेश वेडिंग प्वााईंट फर पौंछ्यौं। हमारी शोबन भैजि अर गणमान्य मनख्यौं सी मुलकात ह्वै। जनार्दन बुड़ाकोटी जी, तन्नु पंत जी सी मुलकात ह्वै जू पुष्प हार की व्यवस्था का खातिर बजार जाण लग्यां था । सब्बि लोग व्यवस्था मा मा व्यस्त था। श्री सुभाष त्रेहान, श्री समीर रतूड़ी जी दिल्लीि बिटि देर सी ऐन किलैकि त्रेहान जी मुबंई बिटि औणा था अर समीर जी ऊं तैं ल्हीक ऐन। रात लगभग 10 बजि समीर जी विवाह स्थल फर पौंछ्यन। श्री कुलदीप धस्माणा, श्री योगबंर रावत जी, श्री राजेन्द्र सिंह राणा जी, दीनदयाल सुन्दरियाल " शैलज" जी, श्री रतन सिंह असवाळ जी, सुरेन्द्र सिंह भण्डारी जी सी मेरी विवाह समारोह का दौरान यादगार मुलकात ह्वै। मैकु ख्याल औणु थौ यूं सज्जनु दगड़ि मैं गढ़वाळि कविता लेखन का माध्याम सी परिचित छौं अर आज साक्षात मुलाकात भी ह्वैगि। छ्वीं बात कू दौर चलि, कुछ हैंसण खेलण कू भी।

बरात कू आगमन ह्वै हम सब्बि लोग बरातियौं का स्वागत का खातिर स्वागत द्वारा फर गयौं। सम्मानित बरातियौं कू पुष्प हार सी स्वागत ह्वै। एक बालिका दुगड़ि ल्हीक स्वागत द्वार फर खड़ि थै। रिब्बन काटण कू दौर थौ। सब्बि नौनि संवाद मा व्यवस्थ थै। कुछ देर बाद बरात टेंट फर पौंछि अर मंच फर फोटो लेण कू दौर शुरु ह्वै। विडियोग्राफर हर एंगल बिटि घराति अर बरातियौं कू छायांकन कन्न लग्यां था। कुछ देर बाद हम सब्बि दगड़यौंन भोजन करि अर विश्राम स्थल याने कमरा फर प्रस्थान करि। बांस की बणि हट्ट मनमोहक लगणि थै। मेरा मन मा विचार औणु थौ उत्तराखण्ड का बांजा पुंगणौं मा किलै न बांस रोपण करिक बांस उत्पादन करे जौ। उत्तराखण्ड भूकंपीय क्षेत्र छ येका कारण वख बांस का मकान बणैये जौन।

देर रात तक हम सब्बि बिज्यां रयौं, छ्वीं बात लगैन अर कुछ देर बाद सेग्यौं अर कुछ मनखि बिज्यां भी रैन। निंद कबरि आई पता हि नि लगि। सुबेर मा मेरी निंद बिजि वेका बाद सेणु असंभव ह्वैगि किलैकि मेरा प्रिय सुनील भैजि घुन्न लग्यां था। हम सब्बिि लोग नहेण धुयेण का बाद दुल्हन की विदाई मा शामिल होयों। नास्ता कन्न का बाद हम सिद्धबलि की तरफ गयौं अर वख हम्न पार्क मा बैठिक मूंगफळि खैन। कुछ देर वख बैठिक प्रकृति का नजारा देखिक वापिस ऐग्यौं। नौटियाळ जिन बताई आज ब्याख्ना हम गुमखाळ जौला।

लगभग 5 बजि 13 फरवरी कू हम्न गुमखाळ कू प्रस्थान करि। दुगडडा की तरफ जांदु सड़क्यौं का घूम हरा भरा जंगळ मनमोहक लगण लग्यां था। मैकु ख्याल आई अर मैंन नौटियाळ जी सी पूछि कि शहीद चंद्रशेखर आजाद जी भी दुगडडा ऐ था। नौटियाळ जिन बताई जै डाळा फर ऊन गोळी चलौण कू अभ्यास करि थौ ऊ डाळु आज भी मौजूद छ अर मेरु देख्युं छ अर वा जगा सड़क मार्ग सी कुछ दूर छ। दुगडडा का बाद टेढा मेढा घूम फर गाड़ी हिंचकोळा खाणि थै। हमारु ज्यु कुछ कबलाण भी लग्युं थौ। मैकु जग्वाळ थै कुलैयौं कू बण कब आलु किलैकि सन 2004 का लगभग मैंन पैलि बार गुमखाळ की ऊकाळ देखि थै। कुळैंयौं कू बण शुरु ह्वै अर हमारी गाड़ी भी बथौं बणिक गुमखाळ जथै भागण लगिं थै। यनु थौ लगणु जन गाड़ी गुमखाळ देखण कू हमसी भी ज्याादा ऊलार मा हो। जब हम गुमखाळ का न्यौड़ु पौछ्यौं त जख मू लैंसडाऊन की सड़क जांदि वख बिटि हम्तैं प्यारा गुमखाळ का दर्शन ह्वैन। ठंड भौत थै, बथौं कू फफराट होणु थौ अर बजार का पास धार मा नयार घाटी बिटि कुरेड़ु भाबर की तरफ भागण लग्युं थौ। बजार पार करिक हम साधना होटल पौंछ्यौं। गाड़ी बिटि सामान निकाळिक हम होटल मा पौंछ्यौं। होटल मालिक रावत जी दगड़ि नौटियाळ जी की सेवा सौंळि ह्वै जौं दगड़ि ऊंकू पूर्व परिचय थौ। चाबी ल्हीक हम्न अपणु कमरा खोलि कमरा भीतर भी भारी ठंड कू अहसास होणु थौ। कमरा का भैर बरामदा मा खड़ु ह्वैक हम्न तराई भाबर की तरफ अर गुमखाळ की डांड्यौं फर नजर दौड़ाई। ठंड का कारण हम भौत देर तक खड़ु नि रै सक्याैं अर कमरा का भीतर बैठिग्यौं। नौटियाळ जिन वेटर तैं चाय अर भोजन कू आदेश दिनि। हम्न तब चा पिनि अर थोड़ा देर बाद भोजन करि। भोजन कन्न का उपरांत हम सेण पड़िग्यौं । रात मा सेयां मा यनु अहसास होणु थौ कि बरखा होणी छ। मन मा ख्याल औणु थौ सैत बर्फबारी भी हो।

रात खुन्न वाळी थै मेरी निंद बिजि। नेगी जी घुन्न लग्यां था तब निंद औण कू सवाल हि नि थौ। रात खुन्न का बाद हम सब्बि खड़ु ऊठ्यौं अर हात मुक्क धोण का बाद हम्न चा पिनि। थोड़ी देर मा समीर जी कू फोन आई कि मैं गुमखाळ सी पैलि एक किलोमीटर की दूरी फर छौं। मैं तुरंत बजार की तरफ गयौं अर दूर बिटि समीर जी की गाड़ी देखिक मैंन ऊं तैं सनकाई यथैं अवा। समीर जी गाड़ी बिटि उतरयन अर वेका बाद हम्न काफी कू रस्वादन करि। कुछ देर बैठण का बाद हम भ्रमण का खातिर सड़क की तरफ चलिग्यौं । हम सड़क मार्ग फर गुमखाळ बिटि ऋषिकेश की तरफ वाळा छोड़ जथैं गयौं अर वख फुंड हम्न प्रकृति का सुंदर नजारा, नयार घाटी जथैं लग्युं कुयेड़ु देखि अर यादगार तस्वीर भी लिन्यन। वेका बाद हम गुमखाळ बजार अयौं अर वख चा समोसा कू आनंद लिनि। बजार मा कोदु, झंगोरु, दाळ, जख्याल, भांग का बीज की दुकान नजर आई। हम सब्यौंन जख्याा,दाळ कोदा कु आटटु खरीदी। मन मा खुशी होणि थै हमारा पहाड़ कू मनखि पहाड़ का उत्पाद बेचिक आजीविका चलौणु छ। कुछ देर बाद हम साधना होटल अयौं अर वेका बाद समीर जिन श्रीनगर गढ़वाळ कू प्रस्थान करि किलैकि ऊन श्री संदीप रावत जी का कविता संग्रह(लोक का बाना) विमोचन समारोह मा शामिल होण थौ।

कुछ देर होटल मा बैठण का बाद हम पैदल बजार जथै गयौं अर वख बिटि घुम्दुो घुम्दु लैंसडाऊन वाळी ज्व सड़क जांदि वख तक छायाकारी करदु, छ्वीं लगौंदु पौछ्यौं। घाम खूब ऐगे थौ चौतरफ डांडी भौत स्वााणि लगणि थै। सड़क मा एक पंडित जी सी मुलकात ह्वै, नौटियाळ जिन अपणा अंदाज मा ऊंदगड़ि छ्वीं लगैन। पंडित जी निमाणा अंदाज का लगणा था अर कखि बिटि ब्योा मा शामिल ह्वैक औण लग्यां था। अब हम वापिस बजार जथैं अयौं अर वेका बाद एक जगा फर पौंछ्यौं। वख मु एक बोडि बैठिं थै। एक भुला गाड़ी कू टैर बदन्न लग्युं थौ। नेगी जिन मैकु बोलि जयाड़ा जी एक कविता सुणावा। कविमन मा कविता पाठ कन्न कू ऊलार होंदु याने कवि चांदु अपणि कविता का माध्यम सी जन जन तक अपणु संदेश पौंछौं। नेगी जी की बात कू सम्मान करदु मैंन बोडि जी तैं अपणि कविता तीन पराणि अर बुढ़ड़ि सुणाई। बोडि अर सब्बि उपस्थित सज्जन कविता सुणिक भौत खुश ह्वैन। नेगी जिन मैकु बोलि जयाड़ा जी आपकी कविता जन सरोकारों सी जुड़ि छन ये वास्ता जन जन तक पौंछैक आप जनकवि बणि सक्दा छन। मैंन भी बोलि नेगी जी यू मेरु सौभाग्य‍ होलु।

अब हम होटल की तरफ गयौं। नौटियाळ जी कू भोजन कू आदेश दिन्युं थौ अर भोजन तैयार थौ। दाळ भात का दगड़ा राई की भूज्जिी भौत सवादि लगणि थै। याने हमारु भोजन होटल का अंदाज मा न बणै घरया अंदाज मा बण्युं थौ। भोजन का उपरांत कमरा फर पौंछिक हम्न अपणु सामान उठाई अर गाड़ी की तरफ चलिग्यौं। दिन की बारह बजिगे थै अर तब हम्न कोटद्वार की तरफ प्रस्थाअन करि। दिल्ली बिटि औन्दि। बग्तर हमारा मन मा ऊलार थौ पर वापसी मा हम थ्यागल्च सी होयां था। गुमखाळ की डांडी अर कुळैं की डाळी हम्तैं बाई बाई कन्न लगिं थै। हम मन मा सोचण लग्यां था गुमखाळ हम त्वैमु फिर बौडिक औला कबरयौं। दुगडडा पौंछिक हम्न धारा कू पाणी पिनि अर कोटद्वार की तरफ जाण लग्यौं। नेगी जी कुछ अळस्यां सी होयां था अर ऊं तैं निंद सी ऐगे थै। जब हम मेरठ का नजिक पौंछयौं त चर्चा ह्वै, जांदी बग्त कनु ऊलार थौ हमारा मन मा। मैंन बोलि पहाड़ अपणा मुल्क जांदि बग्त हमारा मन मा अथाह ऊलार रंदु। औंदि बग्त वा बात नि रंदि। लगभग 6 बजि हम नौटियाळ जी का आवास का नजिक शालीमार गार्डन पौंछ्यौं। हमारी आपस मा विदाई ह्वै, नेगी जी अर मैं ई रिक्शाि मा बैठिक दिल्ली जथै ऐग्यौं । मैंन दिल्ली बार्डर पौंछिक आनंद विहार की बस पकड़ि अर वख पौंछण का थोड़ा देर बाद 469 नंबर बस पकड़िक खानपुर कू प्रस्थांन करि।

अब मैकु अहसास होण लग्युं थौ कवि जिज्ञासुअब तू पिंजणा फर ऐक पिंजणा कु पंछी बणिग्यैं ।
गुमखाळ की डांड्यौं की याद मन मा बसीं थै। हमारु पहाड़ सच मा स्वर्ग का समान छ। पहाड़ जवा घर कूड़ी कू श्रृंगार करा। वख रै नि सक्दा त साल मा तीन चार बार जरुर वख जवा। प्रकृति का हमारा खातिर गाड, गदना, जंगळ, पंछी, डाळा, बुटळा अर फूल बणैयां छन। परदेश मा अपणु रोजगार करा पर अपणा पहाड़ सी प्यार करा। गुमखाळ की डांड्यौंन मेरा मन तै सकून दिनि अपणु सौंदर्य दर्शन कराई। यात्रा वृतांत का माध्याम सी मैंन आपतैं भी काल्पनिक भ्रमण कराई। मेरा कविमन की आस छ आपतैं भलु अहसास होणु होलु।

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जगमोहन सिंह जयाड़ा जिज्ञासुदिनांक 15.2.2016

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