(जगमोहन सिंह जयाड़ा "जिज्ञासु" १.६.२०११ )
पैदा होन्दु ही मैंन देखि, पर उबरी नि बिंग्यौं,
क्यौकु छन यथगा बड़ा, आसमान छुणौकु होयाँ खड़ा,
दादा-दादी, ब्वै-बाब की, खुग्लि मा बैठि-बैठि हेरी,
उबरी मासूम बाळुपन, अर उम्र कच्ची थै सच मा मेरी,
आज सोचदु छौं मैं, पहाड़ सी मैंन क्या क्या सीखी?
बड़ु दिल, धैर्य, शालीनता, जीवन मा ऊंचा उठण की तमन्ना,
घमंड न हो मन मा, कैकु दिल न दुखौं जाणिक कभी....
समझदार होण फर मैंन पूछि, हे पहाड़! क्या देखि त्वैन?
अतीत सी मेरी जन्मभूमि मा, क्या माधो सिंह भंडारी जी भि,
गबर सिंह, चन्दर सिंह, दर्मियान सिंह, तीलु, अर सब्बि वीर भड़,
हे "पहाड़" तू जुगराजि रै, अर जन्म लेलि हमारी अगली पीढ़ी,
तेरी गोद मा, हैंसली खेललि, या मैं जगमोहन सिंह जयाड़ा,
गढ़वाळि कवि "जिज्ञासु" का मन की आस छ...
(सर्वाधिकार सुरक्षित एवं प्रकाशित )
http://www.pahariforum.net/forum/index.php/topic,37.135.html
http://jagmohansinghjayarajigyansu.blogspot.com/
http://www.facebook.com/media/set/?set=a.1401902093076.2058820.1398031521
गढ़वाळि कवि छौं, गढ़वाळि कविता लिख्दु छौं अर उत्तराखण्ड कू समय समय फर भ्रमण कर्दु छौं। अथाह जिज्ञासा का कारण म्येरु कवि नौं "जिज्ञासू" छ।दर्द भरी दिल्ली म्येरु 12 मार्च, 1982 बिटि प्रवास छ। गढ़वाळि भाषा पिरेम म्येरा मन मा बस्युं छ। 1460 सी ज्यादा गढ़वाळि कवितौं कू मैंन पाड़ अर भाषा पिरेम मा सृजन कर्यालि। म्येरी मन इच्छा छ, जीवन का अंतिम दिन देवभूमि उत्तराखण्ड मा बितौं अर कुछ डाळि रोपिक यीं धर्ति सी जौं।
Tuesday, May 31, 2011
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
-
स्व. इन्द्रमणि बडोनी जी, आपन कनु करि कमाल, उत्तराखण्ड आन्दोलन की, प्रज्वलित करि मशाल. जन्म २४ दिसम्बर, १९२५, टिहरी, जखोली, अखोड़ी ग्राम, उत्...
-
उत्तराखंड के गांधी स्व इन्द्रमणि जी की जीवनी मैंने हिमालय गौरव पर पढ़ी। अपने गाँव अखोड़ी से बडोनी जी नौ दिन पै...
-
गढवाळि कविता, भै बंधु, मन मेरु भौत खुश होंदु, पुराणा जमाना की याद, मन मा मेरा जब औंदि, मन ही मन मा रोंदु, मुल्क छुटि पहाड़ छुटि, छु...
No comments:
Post a Comment